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श्रीराम कथा : चरण में अनुराग रखना सरल पर वचनों में कठिन है

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राधेश्याम सोनवानी ,गरियाबंद  : गरियाबंद में आयोजित श्रीराम कथा के छठवें दिवस अयोध्या धाम से पधारी कथावाचिका मानस विदुषी देवी चंद्रकला जी द्वारा श्रीराम वनगमन एवं केवट प्रसंग की कथा की व्याख्या किया गया।

श्रीराम कथा में प्रथम पंचायत मंत्री अमितेश शुक्ल शामिल हुए और व्यासपीठ से आशीर्वाद लिया 

श्री सत्संग मानस मंडली एवं नगरवासियों के सहयोग से आयोजित कथा में देवी चंद्रकला ने बताया कि श्री राघव जी को जन्म देने वाली मां मेरी अम्बा कौशल्या जी है पर इस संसार में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को जन्म देने वाली मां माता कैकेई जी है* कैकेई मां जब राजा दशरथ के पास पूर्व में दिए वचन का स्मरण दिला राम की शपथ खाकर पूरा करने राजा दशरथ ने कैकेई से कहा देवी *हम रघुवंशी है , हम प्राण दे सकते हैं पर दिए गए वचनों से कभी पीछे नहीं हटते* तब कैकेई माता ने अपने प्रथम वर में कहा *कल जो राज्याभिषेक होना है वह मेरे पुत्र भरत का हो राम का नहीं* श्री रामचरित मानस कहता है कि दूसरा वर मांगने से पहले मां कैकेई ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए , क्योंकि मां कैकेई अपने सबसे प्रिय पुत्र राम जी को दिए वचन से विवश होकर राम जी का वनवास मांगे थे अगर राम जी अयोध्या में होते तो सिर्फ श्री राम जी कहलाते लेकिन ये वनवास मां कैकेई ने मांगा और ये चौदह साल की अवधि ने राम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बना दिया

ये मां कैकेई की देन है । श्री राम चरित मानस कहता है इस संसार में वही पुत्र श्रेष्ठ और भाग्यशाली कहलायेगा जो पुत्र अपने माता पिता के वचनों में अनुराग रखे , चरणों में अनुराग नहीं कहा गया है , चरण में अनुराग रखना सरल है पर वचनों में अनुराग कठिन है।

किसी भी कार्य को करने के पूर्व उसका उद्देश्य सही है तो वह सत्कर्म , धर्म होता है । और अगर आप धर्म भी कर रहे हैं और उसके पीछे आपका उद्देश्य गलत है तो धर्म करके भी आप धर्म नहीं कर रहे।

हजारों की संख्या में पंडाल में मौजूद श्रोताओं को केवट प्रसंग बताते हुए कहे कि राम जी जब गंगा किनारे पहुंचे तो दुनिया को पार लगाने वाले श्री राम जी एक केेंवट से नाव मंगाया , केवट जी ने जैसे ही गंगा पार किया मेरे प्रभु उतराई देना चाहते हैं तो मां सीता ने मुद्रिका निकाली तो केवट जी कहते हैं मै रहता गंगा तट पर हूं , तुम रहते जलनिधि तट पर हो , मैं गंगा तट का केवट हूं तुम भव सागर के केंवट हो , गर खुद को ऋणी समझते हो तो ऋण भी वहीं चुका देना , गंगा से पार किया मैने , मुझे भव से पार लगा देना ।

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