
भारत की धरती पर कई साधु-संत व ऋषि-मुनि हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान से जनसाधारण का कल्याण किया है, जो आज भी स्मरणीय है। हर व्यक्ति के लिए साधु-संत या ऋषि-मुनि की उपाधि प्राप्त करना आसान नहीं है, यह पदवी केवल कुछ ही विशेष ज्ञानी लोगों को ही प्राप्त है। आज हम आपको इनके बारे में ही बताने जा रहे हैं।
ऋषि का अर्थऋषि का शाब्दिक अर्थ है द्रष्टा जिसका अर्थ होता है, देखने वाला। जो परमात्मा के गूढ़ रहस्यों के बारे में जान लेते हैं और मानव कल्याण के लिए ज्ञान प्रकट करते हैं, वह विद्वान ऋषि (Rishi) कहलाते हैं। ऋषि कई प्रकार के होते हैं जैसे ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि आदि। सर्वोच्च ऋषि, जिसने ब्रह्म (परम सत्य) का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है।
वहीं देवर्षि वह कहलाते हैं, जो देवताओं और ऋषियों दोनों के गुणों से युक्त होते हैं, जैसे नारद। वहीं अगर महर्षि की बात की जाए, तो यह वह ऋषि होते हैं, जिसने दिव्य ज्ञान प्राप्त किया है जैसे महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वेद व्यास।
कौन होते हैं मुनिमुनि का अर्थ है मनन करने वाला। यह शब्द संस्कृत के ‘मन’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है सोचना या जानना। जो विद्वान विचारशील होते हैं और गहन चिंतन और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से सत्य को जान लेते हैं, उन्हें मुनि की उपाधि दी जाती है। मुनि सभी प्रकार के राग-द्वेष से मुक्त होते हैं और अधिकतर मौन व्रत और गहन ध्यान में रहते हैं।
साधु का सही अर्थसाधु वह पवित्र और सज्जन व्यक्ति होते हैं, जो धर्म का आचरण करते हैं। वह सांसारिक जीवन का त्याग कर ईश्वर या मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधना करते हैं। यह शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका मूल अर्थ है ‘पूरा करने वाला’, ‘कुशल’ या ‘सज्जन’। साधु कल्याण की कामना हेतु लोगों को धर्म और सत्य का उपदेश देते हैं। साधु अक्सर गेरुआ वस्त्र पहनते हैं और वैराग्य का जीवन जीते हैं।
किसे मिलती है संत की उपाधिसत्य का आचरण करने वाले को संत कहा जाता है। यह अपने आत्मज्ञान और सद्गुण से समाज का मार्गदर्शन करने का काम करते हैं। गुरु रविदास , संत कबीर दास, संत तुलसीदास और गुरु घासीदास संत के ही कुछ उदाहरण हैं।



